यह ऑपरेटिंग सिस्टम की एक फीचर होती है, वर्चुअल मेमोरी ऑपरेटिंग सिस्टम का एक अंग होता है, जिसकी सहायता से हम कई एप्लीकेशन अपने कंप्यूटर पर चला सकते हैं। अगर आपके सिस्टम की रैम कम है तो आप वर्चुअल मेमोरी का प्रयोग करके उस कमी को पूरा कर सकते हैं।
मान लीजिए आप एक से ज्यादा एप्लीकेशन अपने सिस्टम पर खोलते हैं और आपके सिस्टम की कम रैम इन्हें खोलने की इजाजत नहीं देती तो आप वर्चुअल मेमोरी की सहायता से इस समस्या को दूर कर सकते हैं।

वर्चुअल मेमोरी क्या है?
वर्चुअल मेमोरी कंप्यूटर की रैम की कमी को पूरा करने में सहायक होता है जब आप एक साथ कई एप्लीकेशन अपने सिस्टम पर खोल लेते हैं तो रैम मेमोरी के कम होने के कारण क्रैश की स्थिति पैदा हो जाती है, लेकिन वर्चुअल मेमोरी आपके कंप्यूटर को यह अनुमति प्रदान करता है कि वह अस्थाई रूप से डाटा के पेजो कि मेमोरी रैम से हार्ड डिस्क में ट्रांसफर करें, कंप्यूटर रैम के ओम क्षेत्रों की तरह देखता है जो हाल में प्रयोग नहीं किए गए हैं और उन्हें हार्ड डिस्क में कॉपी कर देता है जिससे रैम में स्पेस खाली होता है और नए एप्लीकेशन लोड हो जाती है।
यह कंप्यूटर की वास्तविक मेमोरी होती है जो सिस्टम में अतिरिक्त मेमोरी के साथ कार्य करने की यूजर को अनुमति देती है।
इस मेमोरी की जरूरत उतनी ही होती है जितनी की रैम और रोम की, कंप्यूटर में मल्टिप्रोसेसिंग के काम को करने के लिए उनमें रैम का होना बहुत जरूरी है, मल्टिप्रोसेसिंग अर्थात बहुत सारे प्रोग्राम या एप्लीकेशन को एक साथ ओपन करना, जैसे एक ही समय में वेब ब्राउजर, माइक्रोसॉफ्ट वर्ड, फोटोशॉप, एक्सेल आदि प्रोग्राम का इस्तेमाल इसमें शामिल है।
किसी भी कंप्यूटर में विभिन्न एप्लीकेशन और प्रोग्राम को रन करने के लिए कंप्यूटर में रैम ही उस कार्य को करती हैं, हम जितनी बार अलग-अलग एप्लीकेशन अपने सिस्टम में खोलेंगे उतनी बार रैम का स्पेस इन एप्लीकेशन को रन करने के लिए भरता जाता है और कभी-कभी ऐसा सिचुएशन आ जाता है कि रैम का स्पेस इन एप्लीकेशन को रन करने से पूरी तरह से भर जाता है।
उसके बाद कोई भी एप्लीकेशन या सॉफ्टवेयर कंप्यूटर में रन नहीं होता है, तो ऐसे में कंप्यूटर वर्चुअल मेमोरी का इस्तेमाल करता है, वर्चुअल मेमोरी कंप्यूटर के हार्ड डिस्क का स्पेस लेकर कंप्यूटर में रैम के अल्टरनेटिफ टास्क के लिए उपयोग किया जाता है, यानी वर्चुअल मेमोरी कंप्यूटर को एक अलग रूप रैम उपलब्ध करवाती है,
जो फिजिकल रैम से बिल्कुल अलग होती है अलग इसलिए होती है क्योंकि फिजिकल रैम कंप्यूटर सिस्टम में चिपके होते हैं जो की हार्डवेयर है और वर्चुअल मेमोरी एक सॉफ्टवेयर है, वर्चुअल मेमोरी का कार्य यह है कि यदि सिस्टम में रैम का स्पेस कम है तो कंप्यूटर में वर्चुअल मेमोरी का प्रयोग करके उस कमी को पूरा किया जा सकता है,
हर कंप्यूटर सिस्टम में रैम का साइज लिमिटेड होता है जब हम कंप्यूटर में एक से ज्यादा एप्लीकेशन या फाइल्स को खोलते हैं तो रैम का स्पेस भर जाता है इस कारण से सिस्टम का स्पीड धीमा हो जाता है उस वक्त वर्चुअल मेमोरी रैम के डाटा को हार्ड डिस्क के स्पेस में भेज देता है, जिससे रैम खाली होने लगता है और कंप्यूटर की टास्क को बेहतर तरीके से परफॉर्म कर पाता है।
वर्चुअल मेमोरी कैसे कार्य करता है?:-
जब कंप्यूटर के रैम का स्पेस फूल होने लगता है तो कंप्यूटर का ऑपरेटिंग सिस्टम उन एप्लीकेशन और फाइल की जांच करता है जो हम अपने सिस्टम में ओपन रखते हैं और जो भी फाइल या एप्लीकेशन सिस्टम में मिनिमाइज होकर रहती हैं, यानी यूज़र उस टाइम काम नहीं कर रहा होता है लेकिन वह नीचे खुली रहती हैं तो कंप्यूटर उन सभी को वर्चुअल मेमोरी में पेजिंग फाइल की सहायता से रैम की डाटा को ट्रांसफर कर देती है

जब डाटा को फिजिकल मेमोरी से वर्चुअल मेमोरी में ट्रांसफर किया जाता है तब ऑपरेटिंग सिस्टम उस एप्लीकेशन के प्रोग्राम को पेज फाइल में डिवाइड कर देती है और साथ में हर पेज फाइल के साथ एक फिक्स नंबर का एड्रेस भी जोड़ देती है, तो डाटा ट्रांसफर करने के लिए कंप्यूटर रैम के उस एरिया के तरफ देखता है जो हाल ही में प्रयोग नहीं किए गए हैं, और उन्हें हार्ड डिस्क के वर्चुअल मेमोरी में कॉपी कर देता है।
हर पेज फाइल हार्ड डिस्क में जाकर इकट्ठा हो जाते हैं इससे हमारी रैम का स्पेस खाली होने लगता है और जिस एप्लीकेशन पर यूजर वर्तमान में काम कर रहा होता है वह बहुत अच्छे तरीके से रन होता है, तथा उसके साथ नई एप्लीकेशन भी आसानी से लोड हो पाती हैं,
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जब हम उन एप्लीकेशन को ओपन करते हैं जिसे मिनिमाइज करके रखा हुआ है उस वक्त हार्ड डिस्क की वर्चुअल मेमोरी में जो फाइल ट्रांसफर की गई थी उस फाइल के एड्रेस को ऑपरेटिंग सिस्टम वापस डिस्क से कॉपी करके रैम में फिर से भेज देता है जिससे हम उस प्रोग्राम या एप्लीकेशन पर आसानी से काम कर पाते हैं,
ऑपरेटिंग सिस्टम उस फाइल को तब तक हार्ड डिस्क से रैम में लोड नहीं करती है जब तक उसकी जरूरत नहीं पड़ती हैं, इस प्रोसेस से कंप्यूटर में रैम के साइज को बढ़ाया जाता है जिससे कंप्यूटर पर एक से ज्यादा प्रोग्राम या एप्लीकेशन को चलाते टाइम कम साइज के रैम की प्रॉब्लम से छुटकारा पाया जा सकता है,
वर्चुअल मेमोरी कंप्यूटर की फिजिकल मेमोरी नहीं है बल्कि एक ऐसी तकनीक है जो एक बड़ी प्रोग्राम को एग्जीक्यूट करने की परमिशन देती है, जो पूरी तरह से प्राइमरी मेमोरी यानी कि रैम में नहीं रखी जा सकती हैं,
वर्चुअल मेमोरी ऑपरेटिंग सिस्टम का ही एक भाग है जो रैम के कार्य को पूरा करने में मदद करता है तथा वह सारे एप्लीकेशन जिन्हें पहले एक्सेस नहीं कर पा रहे थे उन्हें इस मेमोरी के जरिए अब आसानी से कर सकते हैं।
वर्चुअल मेमोरी के फायदे (benefits of virtual memory):-
1. सिस्टम में एक टाइम में एक से ज्यादा एप्लीकेशन को खोल कर बिना रुकावट के इस्तेमाल किया जा सकता है।
2. वर्चुअल मेमोरी का उपयोग सभी बड़े ऑपरेटिंग सिस्टम में किया जा सकता है।
3. यह उन लोगों के लिए सबसे अच्छे होते हैं जो अपने कंप्यूटर सिस्टम को अपग्रेड करना नहीं चाहते हैं, लेकिन फास्ट काम करना चाहते हैं।
4. वर्चुअल मेमोरी से हम अपने कंप्यूटर के रैम को लगभग दोगुना कर सकते हैं जिससे कंप्यूटर की स्पीड पहले से ज्यादा बढ़ जाते हैं।
5. इससे प्रोग्रामर्स एप्लीकेशन बनाने के लिए बड़े-बड़े प्रोग्राम लिख सकते हैं क्योंकि फिजिकल मेमोरी की तुलना में वर्चुअल मेमोरी बहुत बड़ी होती है।
6. इसमें एक से ज्यादा प्रोग्राम यूज किया जा सकता है।

डिश एडवांटेज ऑफ वर्चुअल मेमोरी(disadvantage of virtual memory):-
1. Swap in और swap आउट होने में ज्यादा टाइम लगता है जो सिस्टम को slow कर देता है।
2. एप्लीकेशन के बीच स्विचिंग करने में भी ज्यादा समय लगता है।
3. वर्चुअल मेमोरी में हार्ड डिस्क को उपयोग में लाया जाता है जिससे हार्ड डिस्क की कमी पड़ जाती है जिससे यूजर को ज्यादा हार्ड डिस्क की जरूरत होने पर फिर से इस्तेमाल नहीं लाया जा सकता है।