Programming क्या है?

प्रोग्रामिंग एक निर्देश का एक सेट बनाने की प्रक्रिया है जो कंप्यूटर को बताती है कि किसी कार्य को कैसे करना है।Programming विभिन्न प्रकार की कंप्यूटर भाषाओं का उपयोग करके किया जा सकता है। जैसे कि एक्सेल, जावा आदि।

प्रोग्राम में एक ऐसा प्रोसेस है जो इंटेक्शन क्रिएट करता है। Programming लैंग्वेज इज कई प्रकार के होते हैं। जैसे कि C

Introduction(परिचय):-

हम यह जानते हैं कि कंप्यूटर स्वत ही कोई भी कार्य नहीं कर सकता है। इसके लिए उसे निर्देशों की आवश्यकता होती है। निर्देशों के उचित क्रम को ही प्रोग्राम कहते हैं। किसी भी प्रोग्राम को तैयार करते समय प्रोग्राम को स्वयं से तीन प्रश्न पूछने चाहिए। क्या करना है?, कैसे करना है?, और कब करना है? प्रोग्राम लिखने से पूर्व उसे यह सुनिश्चित करना होता है कि समस्या का समाधान करने के लिए कंप्यूटर को किन किन स्टेप से गुजरना होगा,

किसी समस्या को हल करने के लिए दिया जाने वाला स्टेप बाय स्टेप प्रोड्यूसर ही एल्गोरिथ्म कहलाता है। जब इस प्रोड्यूसर का चित्रात्मक प्रदर्शन किया जाता है तो वह फ्लो चार्ट कहलाता है।

Programming क्या है? जाने प्रोग्रामिंग सिखने के फायदे
Programming क्या है? जाने प्रोग्रामिंग सिखने के फायदे

प्रोग्राम डेवलपमेंट लाइफ साइकिल(program development life cycle):-

प्रोग्राम डेवलपमेंट लाइफ साइकिल, program development life cycle (PDLC) किसी अच्छे सॉफ्टवेयर को विकसित करने के लिए एक व्यवस्थित approachहोती हैं।

अच्छे प्रोग्राम को तैयार करने के लिए निम्न चरण होते हैं-

1. आवश्यकता का अध्ययन(study of requirement):-

प्रोग्राम को लिखने या प्रारंभ करने से पुरवा प्रोग्राम की आवश्यकता के बारे में संपूर्ण जानकारी होना आवश्यक है। जैसे इनपुट क्या होगा, आउटपुट क्या होगा तथा किन सूत्रों का उपयोग किया जाएगा? आदि।

2. एल्गोरिथ्म का विकास(developing algorithm):-

कंप्यूटर एक मशीन है। अतः आउटपुट ज्ञात करने के लिए हमें गणितीय तथा तार्किक गणनाएं करवाना आवश्यक होता है। जब आप समस्या का अच्छी तरह से अध्ययन कर चुके हो, तब उसका समाधान विभिन्न बिंदुओं के रूप में कागज पर उतारा जाता है, इसे एल्गोरिथ्म कहते हैं।

3. कोडिंग करना(coding the program):-

लिखी गई एल्गोरिथ्म को किसी ऊंची स्तरीय प्रोग्राम भाषा का उपयोग करके प्रोग्राम के रूप में ढाला जाता है। प्रत्येक Programming भाषा के अलग-अलग सिंटेक्स होते हैं। प्रोग्राम को लिखना ही प्रोग्राम को कोड करना कहा जाता है।

4. प्रोग्राम को कंपाइल करना (compiling the program):-

किसी उच्च स्तरीय भाषा जैसे सी, मैं लिखे गए प्रोग्राम को सोर्स कोड का जाता है। प्रोग्राम का आउटपुट देखने के लिए इसका मशीन कोड में अनुवाद होना अति आवश्यक होता है। इस प्रक्रिया को प्रोग्राम कंपाइल करना भी कहते हैं। सोर्स कोड का यह कंपाइल्ड रूबी ऑब्जेक्ट कोड कहलाता है।

5. प्रोग्राम का आउटपुट देखना चाहता उसे टेस्ट करना (executing and testing the program):-

प्रोग्राम का execute करने को रनिंग द प्रोग्राम भी कहा जाता है। प्रोग्राम में कुछ सैंपल वैल्यू डालकर ‌ यह पता की जाती है कि, उस प्रोग्राम का आउटपुट ठीक आ रहा है अथवा नहीं। इस दौरान आपको कुछ त्रुटियों का सामना करना पड़ सकता है, जिन्हें हम रनटाइम इरर कहते हैं। इन्हें लॉजिकल इरर भी कहा जाता है। इन इरर को दूर करने के बाद प्रोग्राम को पुनः कंपाइल करके रन किया जाता है। वह प्रक्रिया तब तक जारी रहती है जब तक आपका प्रोग्राम सही आउटपुट नहीं देता है।

एल्गोरिथ्म(algorithm):-

एल्गोरिथ्म किसी समस्या के समाधान का बिंदुवार प्रदर्शन होता है। एल्गोरिथ्म समस्या के समाधान का तर्क होता है जिसे इंग्लिश जैसे भाषा में लिखा जाता है। एल्गोरिथ्म को इस प्रकार से लिखा जाना चाहिए कि यदि इसे प्रोग्राम में परिवर्तित कर दिया जाए तो वांछित परिणाम मिल जाए।

अच्छे एल्गोरिथ्म की विशेषताएं:-

इनपुट(input):- यूजर द्वारा मांगा जाने वाला डाटा इनपुट होता है।

आउटपुट(output):-एल्गोरिथ्म के समाप्त होने पर कम से कम एक आउटपुट तो मिलना ही चाहिए।

Definiteness :-एल्गोरिथ्म की प्रत्येक स्टेप पूर्ण परिभाषित तथा स्पष्ट होनी चाहिए।

Finiteness :-एल्गोरिथ्म में स्टेप की निश्चित संख्या होनी चाहिए। कोई भी स्टेप अनंत बार नहीं चलनी चाहिए। स्टेप की निश्चित संख्या के पश्चात एल्गोरिथ्म समाप्त होनी चाहिए।

Effectiveness :- एल्गोरिथ्म असरदार होनी चाहिए, की प्रोग्राम और सिर्फ इसकी स्टेप का ही अनुसरण करें। ना कि अपने तर्क लगाएं। अन्य शब्दों में एल्गोरिथ्म समस्या का पूर्ण परिभाषित समाधान होना चाहिए।

Programming अवधारणाएं क्या होती है?:-

कंप्यूटर की सहायता से किसी समस्या को हल करने के लिए क्रिया और पदों को क्रमवार करना है कंप्यूटर Programming चलाता है। जो व्यक्ति कंप्यूटर के लिए प्रोग्राम लिखते हैं या तैयार करते हैं उन्हें प्रोग्रामर कहा जाता है। प्रोग्रामर कंप्यूटर प्रोग्रामिंग के लिए कुछ विशेष भाषा का प्रयोग करते हैं जिसे हम प्रोग्रामिंग भाषा कहते हैं। जैसे सी प्लस, प्लस जावा आदि भाषा।

Programming की परिभाषा:-

इन भाषाओं की अपनी एक अलग व्याकरण होती है और प्रोग्राम लिखते समय उनके व्याकरण का पालन करना आवश्यक होता है। यह भाषाएं कंप्यूटर और प्रोग्रामर के बीच संपर्क किया संवाद बनाती है। कंप्यूटर उन के माध्यम से दिए गए निर्देशों को समझ कर उसके अनुसार कार्य करती है, और निर्देश इस प्रकार दिए जाते हैं कि उनका क्रम पालन करने से कई कार्य पूरा हो जाए।

Programming क्या है? जाने प्रोग्रामिंग सिखने के फायदे
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प्रोग्रामिंग भाषाओं का परिचय(introduction to programming languages ):-

हम किसी व्यक्ति से बातचीत करने के लिए प्राकृतिक भाषाओं जैसे हिंदी, अंग्रेजी, तमिल, गुजराती आदि का उपयोग कर सकते हैं। इसी प्रकार कंप्यूटर में भी किसी निर्देश के पालन करवाने के लिए हमें Programming भाषाओं की आवश्यकता होती है।

Programming भाषा के माध्यम से ही यूज़र कंप्यूटर में आवश्यक डाटा तथा निर्देश देता है। जिसके आधार पर हमें कंप्यूटर द्वारा परिणाम प्राप्त होते हैं।

किसी Programming भाषा को सीखने के लिए आवश्यक है, उस भाषा में प्रयोग किए जाने वाले विशेष चिन्ह, विशेष शब्द तथा नियमों को सीखना। वर्तमान में कई प्रकार की प्रोग्रामिंग भाषाएं उपलब्ध है।

प्रोग्रामिंग भाषा को दो वर्गों में विभाजित किया जा सकता है-निम्न स्तर Programming भाषाएं, उच्च स्तर प्रोग्रामिंग भाषाएं।

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निम्न स्तर प्रोग्रामिंग भाषाएं(low level programming languages):-

इन भाषाओं को कंप्यूटर की आंतरिक संरचना से निकटता के कारण पहचाना जाता है। यह कंप्यूटर की संरचना पर निर्भर करती है, तथा एक कंप्यूटर के निर्देश दूसरे कंप्यूटर के निर्देश से भिन्न होते हैं।

यह कंप्यूटर के आंतरिक कार्यप्रणाली के अनुसार बनाई जाती है तथा ऐसी भाषा में लिखे जो प्रोग्राम के पालन करने की गति अधिक होती है क्योंकि कंप्यूटर उसके निर्देशों का सीधे ही पालन कर सकता है। इन के दो प्रकार होते हैं-

1. मशीनी भाषा (machine language):-

सभी डिजिटल कंप्यूटर बायनरी संख्याओं 0,1 को ही समझ पाते हैं। किसी कंप्यूटर के सीपीयू द्वारा सीधे समझे जाने वाले निर्देशों को मशीन लैंग्वेज कहते हैं। यह भाषाएं सर्वप्रथम अस्तित्व में आई। पता इन्हें प्रथम पीढ़ी की भाषा भी कहा जा सकता है।

मशीनी भाषा के किसी निर्देश में सिर्फ 0,1 का ही समावेश हो सकता है। कंप्यूटर इसे सीधे एक्सक्यूट करता है। यह बहुत तीव्र गति के कार्य करती हैं।

मशीनी भाषाएं केवल बायनरी अंको 0,1 से बनी होती है। प्रत्येक कंप्यूटर के लिए उसकी अलग मशीनी भाषा होती है। मशीनी भाषा का प्रयोग प्रथम पीढ़ी के कंप्यूटर में किया जाता था, तथा इनमें त्रुटियों का पता लगाना एवं उन्हें ठीक करना लगभग असंभव होता है।

2. असेंबली भाषा(assembly language):-

इसे द्वितीय पीढ़ी की भाषा भी कहा जाता है। इस भाषा में mnemonic का उपयोग किया जाता है। mnemonic का अर्थ उन छोटे नामों से लगाया जाता है जो मशीन लैंग्वेज द्वारा संपन्न किए जाने वाले विभिन्न ऑपरेशन के लिए रखे जाते हैं।

इस प्रकार किसी असेंबली लैंग्वेज प्रोग्राम में संख्यात्मक कोड के स्थान पर छोटे नाम दिए जाते हैं। इस भाषा के निर्देश भी प्रत्येक कंप्यूटर पर भिन्न-भिन्न होते हैं। इस भाषा के निर्देश को मशीनी भाषा के निर्देश में परिवर्तित करने के लिए असेंबलर नामक प्रोग्राम की आवश्यकता पड़ती है।

असेंबली भाषाएं पूरी तरह मशीनी भाषा पर आधारित होते हैं। परंतु इनमें जीरो से एक के स्थान पर अंग्रेजी के अक्षरों और कुछ गिने-चुने शब्दों को कोड के रूप में प्रयोग किया जाता है। इन भाषाओं में लिखे गए प्रोग्राम में 20 का पता लगाना और उन्हें ठीक करना सरल होता है।

Programming क्या है? जाने प्रोग्रामिंग सिखने के फायदे
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उच्च स्तर Programming भाषाएं(high level programming language):-

निम्न स्तर भाषाओं की कमियों को दूर करने के लिए उच्च स्तर भाषाओं का विकास हुआ। निम्न स्तर भाषाओं के विपरीत उच्च स्तर भाषाएं कंप्यूटर के संरचना पर निर्भर नहीं करते हैं। इसका अर्थ है कि किसी एक कंप्यूटर पर चलाए गए प्रोग्राम को बिना किसी परिवर्तन के किसी दूसरे कंप्यूटर पर भी चलाया जा सकता है।

इन भाषाओं के निर्देश सामान्य अंग्रेजी भाषा में लिखे जाते हैं। इन्हें समझना अत्यंत आसान होता है।

उच्च स्तरीय भाषा में कंप्यूटर की आंतरिक कार्य प्रणाली पर आधारित नहीं होते हैं, इन भाषाओं में अंग्रेजी के कुछ चुने हुए शब्दों और साधारण गणित में प्रयोग किए जाने वाले चिन्हों का प्रयोग किया जाता है। इनमें त्रुटियों का पता लगाना और उन्हें ठीक करना सरल होता है। किंतु इन भाषा में लिखे गए प्रोग्राम को मशीनी भाषा में कंपाइलर या इंटरप्रेटर के द्वारा अनुवादित कराया जाना आवश्यक होता है।

कंप्यूटर प्रोग्राम सामान्य रूप से उच्च स्तरीय Programming भाषा में लिखे जाते हैं। प्रोग्राम के मानव द्वारा रीडेबल वर्जन को सोर्स कोड कहते हैं।

कुछ प्रमुख उदाहरण जैसे, basic, fortran, COBOL,c, C++, आदि।

BASIC:-

इसका पूर्ण रूप, Beginners All-purpose symbolic instruction code होता है। यह साठ के दशक में विकसित की गई। यह सीखने तथा समझने में बहुत आसान होता है। या विद्यालयों में Programming के तथ्यों को समझाने के उद्देश्य से उपयोग में लाई जाती है।

FORTRAN:-

इसका पूर्ण रूप formula translation हैं। जब अज्ञानी को तथा इंजीनियरों द्वारा उपयोग में लाई जाने वाली भाषा है। इसका FORTRAN -IV संस्करण अत्यधिक प्रचलित है। इस भाषा का विकास आईबीएम द्वारा 1957 में किया गया था।

PASCAL :-

यह भाषा Nicklaus wirth द्वारा 1968 में विकसित की गई। इस भाषा का नाम उन्होंने फ्रांस के महान गणितज्ञ ब्लेज पास्कल पर रखा। शिक्षा के क्षेत्र में इससे बेहतरीन भाषा का दर्जा दिया गया है।

इस भाषा में एक मुख्य प्रोग्राम तथा छोटे-छोटे तार्किक उप प्रोग्राम जिन्हें modules कहते हैं। यह भाषा व्यवसायिक व वैज्ञानिक क्षेत्रों में बहुत उपयोगी है।

COBOL :-

इसका पूर्ण रूप common business oriented language होता है। यह भाषा व्यापारिक अनुप्रयोगों के लिए बहुत उपयोगी है।COBOL का विकास CODASYL (conference on data system language) द्वारा किया गया था।

भाषा अनुवादक क्या है?:-

ऐसे प्रोग्राम जो विभिन्न Programming भाषाओं में लिखे गए प्रोग्राम का अनुवाद कंप्यूटर के मशीनी भाषा में करते हैं अनुवाद कराना इसलिए आवश्यक होता है क्योंकि कंप्यूटर केवल अपनी भाषा में लिखे हुए हैं प्रोग्राम का ही पालन कर सकता है।

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भाषा अनुवाद को मुख्य तीन श्रेणियों में बांटा गया है-

1. कंपाइलर:-

कंपाइलर एक ऐसा अनुवादक प्रोग्राम होता है जो किसी उच्च स्तरीय Programming भाषा में लिखें इसी प्रोग्राम को मशीनी भाषा में परिवर्तित कर देता है। प्रत्येक प्रोग्रामिंग भाषा के लिए पृथक कंपाइलर की आवश्यकता होती है।

2. इंटरप्रेटर:-

इंटरप्रेटर भी एक ऐसा अनुवादक प्रोग्राम होता है जो उच्च स्तरीय Programming भाषा में लिखें किसी प्रोग्राम के निर्देशों को एक-एक करके मशीनी भाषा के निर्देशों में परिवर्तित कर देता है।

3. असेंबलर:-

यह सिस्टम सॉफ्टवेयर होता है। यह बेसिकली जो भी असेंबली भाषा प्रोग्राम को मशीनी भाषा प्रोग्राम में परिवर्तित कर देता है। यह मशीन पर डिपेंड होती है। ऐसे Programming भाषा को हम निम्न स्तर लैंग्वेज कहते हैं। क्योंकि जो हमारा असेंबली भाषा है वह मशीन डिपेंडेंट लैंग्वेज है।

Linker क्या है?:-

लिंकर एक ऐसा प्रोग्राम होता है जो किसी बड़े प्रोग्राम के विभिन्न उप प्रोग्राम अथवा subroutines अथवा modules को आपस में इस प्रकार से जोड़ता है कि हमें वह बड़ा प्रोग्राम संपूर्ण नजर आता है।

सभी Programming भाषाओं में पहले से बनी कुछ libraries होती है जिनमें पूर्व परिभाषित फंक्शन होते हैं। जब कोई प्रोग्रामर प्रोग्राम बनाता है तो इन फंक्शंस का उपयोग किया जा सकता है। लिंकिंग की प्रक्रिया में इन फंक्शन को वास्तविक प्रोग्राम के साथ जोड़ा जाता। इस प्रकार वास्तविक प्रोग्राम के ऑब्जेक्ट कोड के साथ में फंक्शन के ऑब्जेक्ट कोड को लिंक करने से executable file बनती है।

Loader क्या है

Loader का कार्य प्रोग्राम को द्वितीयक मेमोरी से लेकर उसकी प्रति को प्राथमिक मेमोरी में लोड करना होता है। यह भी एक सिस्टम सॉफ्टवेयर होता है।