विंडोज(windows) एक सिस्टम सॉफ्टवेयर (system software)होता है। विंडोज शब्द माइक्रोसॉफ्ट के GUI(graphical user interface) ऑपरेटिंग सिस्टम है। इस ऑपरेटिंग सिस्टम का नाम विंडोज इसलिए रखा गया क्योंकि इसमें प्रत्येक सॉफ्टवेयर एक आयताकार ग्राफिक्स बॉक्स के रूप में खुलता है।
विंडोज एक प्रकार का ऑपरेटिंग सिस्टम है। विंडोज ऑपरेटिंग की सहायता से हम अपने कंप्यूटर में इंटरनेट तथा डिजाइन से संबंधित कार्य करते हैं। तथा मल्टीमीडिया नेटवर्किंग का यूज भी कर सकते हैं। विंडोज का सबसे पहला वर्जन windows 3.01 मार्केट में आया तब से लेकर आज तक बहुत सारे वर्जन आए हैं जो निम्न प्रकार से हैं-
Windows 95, Windows 98, Windows 2000, windows me(millennium), Windows XP, Windows NT, Windows Vista, Windows 7, Windows 8, Windows 8.1, Windows 10, and Windows 11(Latest)
Note:-कंप्यूटर का सॉफ्टवेयर और हार्डवेयर को जोड़ने और हमारे समझने में ऑपरेटिंग सिस्टम का बहुत बड़ा योगदान है।
Microsoft windows क्या है?:-
माइक्रोसॉफ्ट विंडोज का पुरा नाम माइक्रोसॉफ्ट वर्ल्ड वाइड इंटरएक्टिव नेटवर्क डेवलपमेंट फॉर ऑफिस वर्क सलूशन है। माइक्रोसॉफ्ट विंडोज पर्सनल कंप्यूटर के लिए माइक्रोसॉफ्ट द्वारा विकसित ऑपरेटिंग सिस्टम है। विश्व के लगभग 90 % ही पर्सनल कंप्यूटर में माइक्रोसॉफ्ट विंडो ऑपरेटिंग सिस्टम का उपयोग हो रहा है। ग्राफिकल यूजर इंटरफेस मल्टीटास्किंग वर्चुअल मेमोरी की सुविधा देता है।
विंडोज का शाब्दिक अर्थ होता है खिड़कियां। विंडोज एक ऑपरेटिंग सिस्टम है। विंडोज का उपयोग लगभग सभी व्यक्तिगत कंप्यूटरों में होता है। इसका विकास माइक्रोसॉफ्ट कॉरपोरेशन ने किया था।

माइक्रोसॉफ्ट विंडोज के प्रकार?:-
माइक्रोसॉफ्ट विंडोज मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं:-
1. सिंगल यूजर(single user):-
सिंगल यूजर ऑपरेटिंग सिस्टम में एक समय में केवल एक ही व्यक्ति कंप्यूटर का इस्तेमाल कर सकता है। यह single-user यानी कि एक व्यक्ति के लिए होता है।
2. मल्टीपल यूजर (multiple user):-
मल्टीपल यूजर ऑपरेटिंग सिस्टम में एक समय में एक या एक से अधिक लोग कंप्यूटर पर साथ में काम कर सकते हैं। इसका उपयोग बड़े-बड़े कंपनियों में किया जाता है।
विंडोज की विशेषताएं:-
1. माइक्रोसॉफ्ट विंडोज ग्राफिकल इंटरफेस ऑपरेटिंग सिस्टम है।
2. विंडोज को बहुत ही सरल और आसान बनाया गया है। इस कारण इसे हर वर्ग, आयु का व्यक्ति बड़ी आसानी से समझ सकता है और चला सकता है।
3. Ms- Dos में सभी कार्य को कमांड के जरिए के जाते थे, पर विंडोज आने से माउस से कार्य करना आसान हो गया।
4. विंडोज में ऑटोमेटिक अपडेट का फीचर दिया गया है। ऑपरेटिंग सिस्टम को सुरक्षित और अप टू डेट रखने के लिए यह फीचर काफी अहम रोल निभा रहा है।
5. इसमें टास्कबार होता है, जहां पर सभी खुली हुई प्रोग्राम के आइटम दिखते हैं। जिसकी मदद से दूसरे प्रोग्राम पर आसानी से स्विच किया जा सकता है।
6. विंडोज़ के बिना कंप्यूटर को चला पाना संभव नहीं है, इसलिए विंडोज का कंप्यूटर में इंस्टॉल होना जरूरी है।
7. विंडोज दूसरी ऑपरेटिंग सिस्टम के मुकाबले ज्यादा कंपैटिबल(compatible) पुराने वर्जन में इस्तेमाल किए जाने वाले प्रोग्राम ,नए वर्जन में भी सपोर्ट करता है।
एम एस विंडोज संस्करण क्या है?:–
1. विंडोज- 95
2. विंडोज -98
3. विंडोज -2000
4. विंडोज -NT
5. विंडोज -ME
6. विंडोज -XP
7. विंडोज -vista
8. विंडोज-7
9. विंडोज- 8
10. विंडोज- 10
11. विंडोज – 11
ऑपरेटिंग सिस्टम C-DAC(centre for development of advanced computing) द्वारा विकसित किए गए हैं। हिंदी भारतीय क्षेत्रों में प्रयोग करने के लिए बनाए हैं।
विंडोज उपयोगी प्रोग्राम:-
1. नोटपैड
2. वर्डपैड
3. पेंट
4. कैलकुलेटर
5. मीडिया प्लेयर
6. गेम आदि और बहुत सारे प्रोग्राम होते हैं विंडोज में प्रोग्राम होते हैं।
भारत ऑपरेटिंग सिस्टम सॉल्यूशन (एमएस विंडोज):-
1. विंडोज-95
2. विंडोज – 98
3. विंडोज – XP
4. Windows -vista इसके बाद बहुत से बाजार में आए, 2007,2008,2010
विंडोज के इतिहास(history of windows):-
विंडोज की शुरुआत 1981 में हुआ था। MS-DOS ऑपरेटिंग सिस्टम के नाम से। इस का फुल फॉर्म था माइक्रोसॉफ्ट डिस्क ऑपरेटिंग सिस्टम 1981 में यह आया था।
और यह पर्सनल कंप्यूटर जो आईबीएम के पर्सनल कंप्यूटर होते थे उनके लिए यह बना था। इसमें यूजर इंटरफेस के नाम पर कुछ भी नहीं था। इसमें बेसिकली आप कमान टाइप करके स्कोर यूज कर सकते थे।
एक ब्लैक स्क्रीन होती थी और जो टेक्स्ट आप टाइप करते थे वह वाइट कलर का नजर आता था। इसके एप्लीकेशन V होती थी वह डोज एप्लीकेशन हुआ करती थी। उसमें आइकंस नहीं होते थे। लेकिन यह पर्सनल कंप्यूटर की शुरुआत थी और यहीं से पर्सनल कंप्यूटर का जो कि घर घर में पहुंच गए।
अब दौर आ चुका था 1985 का और विंडोस ने लॉन्च कर दिया अपना नया ऑपरेटिंग सिस्टम। विंडोज 1.0 इस ऑपरेटिंग सिस्टम की खास बात यह थी कि इसमें आपको सिर्फ टाइप नहीं करना होता था, अप्वॉइंट करके विंडो स्कोर बॉक्स बॉक्स इसका इंटरफेस है वह इसमें इंटरड्जूज कराया गया था। टाइप करने के अलावा इनबॉक्सेस को सेलेक्ट कर सकते हैं और क्लिक कर सकते थे इसका मेजर अपडेट था।
अब वक्त आ चुका था 1987 का और विंडोज़ ने लांच कर दिया था अपना नया ऑपरेटिंग सिस्टम 2.0 इस ऑपरेटिंग सिस्टम की खास बात यह थी कि इसमें कीबोर्ड के शॉर्टकट्स मिल चुके थे। इसमें आइकंस मिल गए थे। इसमें एक्स्ट्रा ग्राफिक्स का सपोर्ट भी मिल गया था। देखने के जो भी विजुअल चीज है उसमें काफी चेंजस आए काफी अच्छी हो गई।
कीबोर्ड की शॉर्टकट से कर सकते थे। एमएस डॉस का सपोर्ट इसमें अभी था। था तो यह काफी पुराना सिस्टम लेकिन इसमें काफी चेंज कर दिया गया। इंटरफ़ेस इसका काफी अच्छा था क्योंकि इसमें आइकंस आ गया तो यह बहुत बड़ा चेंजस आया था और यह बहुत ही पॉपुलर हुई।
अब आ चुके थे विंडोज 3.0 और 3.1 जो कि 1990-1994 के बीच में काफी पॉपुलर ऑपरेटिंग सिस्टम था। और इसमें बिल्कुल यह सब कुछ बदल गया था। इसमें 16 बिट कॉलर का सपोर्ट मिले लगा। एडवांस हो चुका था इस ऑपरेटिंग सिस्टम को इंटेल के 38 प्रोसेसिंग के लिए बनाया गया था। ज्यादा रिसोर्सेज इस्तेमाल कर सकते थे।
इसके आइटम ग्राफिक्स परफॉर्मेंस कीबोर्ड यह सब बहुत अच्छे से ऑप्टिमाइज किया गया और यह फ्रेश लुक निकल कर आया। फाइल मैनेजर यह सारी चीजें, प्रोग्राम मैनेजर इंटरड्यूज कराई गई।
यह ऑपरेटिंग सिस्टम कंप्यूटर गेमिंग की दुनिया में एक शुरुआत थी। कंप्यूटर में गेमिंग की शुरुआत इसी ऑपरेटिंग सिस्टम से हुई थी। अब वक्त आ गया था 1995 का और आ चुके थे विंडोज -95 इसमें मेन हाइलाइटेड थे कि इसमें जो सॉफ्टवेयर थे वो 32 बीट आर्किटेक्चर पर चलने लगे थे।
इसको मिला आपको plug-in प्ले का सपोर्ट। और प्रिंट का सपोर्ट था, जैसे plug-in प्ले कर सकते थे। या अपने आप ही भाप लेता था कि कौन सा ड्राइव हार्डवेयर लगाया गया है।
अब वक्त आ चुका था 1998 का और आ चुके थे विंडोज 98, इसके मेन हाइलाइट थे कि इसमें डीवीडी, यूएसबी, एलईडी यह सारे इसमें इंट्रोड्यूस करा दिए गए थे। और इस ऑपरेटिंग सिस्टम में पहला ऑपरेटिंग सिस्टम था कि इसमें कोई फर्क नहीं था कि इसमें कोई लोकल फाइल स्टोर कर रहे हो या किसी क्लाउड पर जाकर ऑनलाइन सर्वर पर कर रहे हो, कोई डिफेंस नहीं रह गया था। सेम तरीके से इसे एक्सेस कर सकते थे।
इसकी खास बात थी कि इसमें एक्टिव डेस्कटॉप था। और पहली बार अगर किसी ऑपरेटिंग सिस्टम में एक्सप्लोरर इंटरड्यूज कराया गया था तो वह यही था। इसमें इंटरनेट प्लोरल पहली बार देखा गया। उसके बाद सन् 2000 में आया विंडोज मी( windows-ME) इसकी फुल फॉर्म थी विंडोस मिलीनियम एडिसन।
इसकी खास बात यह थी कि यह विंडोज 98 का ही अपडेट वर्जन था बस इसमें बूट इन डॉस ऑप्शन को हटा लिया गया मतलब डाॅस में जो बूट होता था उसे हटा लिया गया। और जो भी पहले छोटे-मोटे अपडेट करके इसको नयें नाम से सन 2000 में इसे लॉन्च कर दिया गया।

अब तो आ चुका था मल्टीटास्किंग का, 1993-96 के बीच में एक और ऑपरेटिंग सिस्टम आया था जिसका नाम था विंडोज-NT इस का फुल फॉर्म था विंडोज न्यू टेक्नोलॉजी। ये 32 बीट का ऑपरेटिंग सिस्टम था और यह वर्क स्टेशन और सरवर के लिए बनाया गया था। सबसे पहली बार अगर किसी कंप्यूटर में ज्यादा अच्छे तरीके से मल्टीटास्किंग यूज कराई गई उसकी शुरुआत आपके सकते हैं विंडोज-NT से हुई।
अब आ गया था सन 2000 का दौर और अब निकली थी विंडोज -2000 जिसको विंडोज – 2 k भी कहा जाता था। इस ऑपरेटिंग सिस्टम में हाईलाइट चेक की इसको बहुत अच्छी तरीके से इस्तेमाल कर सकते थे। अपने कंप्यूटर को इंटरनेट से जोड़ सकते हो। इसमें नेटवर्क सोशल को बहुत अच्छे से इस्तेमाल कर सकते हो। अपने कंप्यूटर को प्रिंटर से नेटवर्क के थ्रू जोड़ सकते हैं। इसकी सपोर्ट बहुत अच्छी नहीं लगी थी।
इस कंप्यूटर को इस ऑपरेटिंग सिस्टम को सरवर के तौर पर भी इस्तेमाल किया जा सकता था। इसमें प्रिंटर का बहुत अच्छा सपोर्ट मिला था। प्रिंटर का जो सबसे अच्छा सपोर्ट मिला था वह सन 2000 में मिला था। यह पहला सिस्टम था जो लैपटॉप पर चल सकता था। इसको डेटासेंटर्स में भी इस्तेमाल काफी मात्रा में किया जाने लगा था।
इसके बाद अक्टूबर 2001 में कुछ ऐसा हुआ जिसने पर्सनल कंप्यूटिंग की दुनिया ही बदल दी। कुछ ऐसा सामने निकल कर आया जिसने पूरे घर घर में ऐसे कंप्यूटर्स को पहुंचा दिया जो इस्तेमाल करने में बहुत आसान था। जी हां मैं बात कर रही हूं विंडोज -xp की यह बहुत ही स्टेबल ऑपरेटिंग सिस्टम था। विंडोज का सबसे ज्यादा पॉपुलर सबसे ज्यादा बिकने वाला और सबसे ज्यादा सक्सेसफुल विंडोज एक्सपी (windows-XP) ही है।
इसके टक्कर का कोई ऑपरेटिंग सिस्टम नहीं है। यह दुखद बात है कि ईसकी सपोर्ट और सिक्योरिटी के पैचेस जो आते हैं वह 2014 में ही खत्म हो गई, लेकिन आज भी एटीएम मशीन और कई ट्रांजैक्शन जहां पर किया जाता है वहां पर यह यूज होती है।
इस ऑपरेटिंग सिस्टम में सबसे पहले इंट्रोड्यूस्ड कराया गया वायरलेस टेक्नोलॉजी को अब यह द्वारा चुका था जब वायरलेस वाईफाई ब्लूटूथ यह सब टेक्नोलॉजी आ चुके थे। तो उनके लिए सॉफ्टवेयर भी होने चाहिए तो लैपटॉप में जो विंडोज एक्सपी का इस्तेमाल किया करते थे वह बड़े आसानी से करते थे।
और जो भी वायरस टेक्नोलॉजी उसे जबानें में हुआ करती थी उसका बहुत अच्छे से इस्तेमाल कर सकते थे। हालांकि यह विंडोज 2000 पर बना था पर बहुत ही स्टेबल ऑपरेटिंग सिस्टम था।
अब दौर आ चुका था 2006 का और लॉन्च हो चुका था विंडोज -vista का यह विंडोज एक्सपी के बाद आई थी और ज्यादा एडवांस थे विंडोज एक्सपी से। वुटिंग से क्योंकि जो विंडोज एक्सपी थी उसके बूटिंग ज्यादा टाइम लगाती थी। विंडोज़ विस्टा में बूटिंग टाइम का काफी इंप्रूव किया गया। सिक्योरिटी के तरफ से काफी अच्छा था लाइट वेट था।
और कुछ प्रोग्राम तो इसमें इतना फास्ट चलते थे कि विंडोज एक्सपी से ज्यादा चलते थे। तो यह बहुत ही अच्छा लाइटवेट और ऐसे मैनेज करना बहुत ही अच्छा था। इसमें एरर नहीं आते। विंडोज एक्सपी में बहुत ही ज्यादा वायरस आया करते थे जिसे मैंनेज करना बहुत ही मुश्किल होता था।
हालांकि फंक्शंस के हिसाब से विंडोज एक्सपी आज भी बहुत अच्छा माना जाता है। लेकिन उसमें एरर बहुत आते थे और उसको मैनेज करने में कठिनाई आती थी। उस चीज को फिक्स करने के लिए विंडोज विस्टा निकला जो कि कम हार्डवेयर का इस्तेमाल करता और काफी लाइटवेट था वोटिंग टाइम काफी इंप्रूव कर दिया गया।
इसमें छोटे-मोटे फिक्सर्स करके इसको लांच कर दिया गया और इसका इंटरफेस भी काफी स्टाइलिश था विंडोज एक्सपी की तुलना। विंडोज एक्सपी से ज्यादा रिस्पांस हुआ करता था। और विंडोज एक्सपी से कम पावर लिया करता था।
उसके बाद आया साल 2009 और लॉन्च हो गई विंडोज- 7 जो कि बहुत ज्यादा एडवांस देखने में बिल्कुल अलग, वर्चुअल हार्ड डिस्क का सपोर्ट इसमें देखने को मिला और इसमें मिला इंटरनेट एक्सप्लोरर 8। मीडिया सेंटर काफी अच्छा सा सपोर्ट मिला। यह पहला ऑपरेटिंग सिस्टम था जिसमें टच इंटरफेस को इंटरड्यूज कराया गया।
मतलब इस दौर में टच कंप्यूटर आने लगे थे। windows7 आया जिसने पूरी दुनिया बदल दी। एसपी के बाद अगर कोई सबसे पॉपुलर विंडोज़ के बात करें तो वह विंडोज़ -7 है। आज फिर windows7 का इस्तेमाल ज्यादातर लोग कर रहे हैं। विंडोज 10 की तुलना में। यह काफी अच्छा था। 2009 तक तो windows7 काफी अच्छी थी अब आगे कुछ ऐसा होने वाला था जिसकी आपने कल्पना भी नहीं की थी।
अब दौर आया 2012 का और लांच हुआ विंडोज 8। एक नई डिजाइन के विंडोज जो कि विंडोज लगती नहीं थी। लाइव टाइल का अपडेट इसमें देखने को मिला। काफी हद तक विंडोज 7 जैसा था लेकिन स्टाइल में बिल्कुल अलग था। लोगों को यह लुक पसंद नहीं आया। यह इसके गले डिजाइन के वजह से ज्यादा सफल नहीं हो पाया।
अब वक्त आ गया था 2015 का और और लॉन्च हो चुका था विंडोज -10 यह बहुत ही एडवांस विंडोज थी। इसमें टच सपोर्ट काफी अच्छा देखने को मिला। इसमें इंटरनेट एक्सप्लोरर की जो छवि थी उसको सुधारने की कोशिश की गई जैसा कि आप जानते हैं इंटरनेट अपने स्लो एक्सप्लोरर स्पीड की वजह से बड़ा बदनाम है। तो माइक्रोसॉफ्ट ने इस ब्राउज़र का नाम चेंज कर दिया और एक नया ब्राउजर बना दिया जिसका नाम रखा माइक्रोसॉफ्ट-H और उसको इंटरड्यूज करा दिया इसके साथ।
START MENU -(START BUTTON)
1. विंडोज की(windows key) को प्रेस करने पर डिस्प्ले होने वाले बॉक्स में सभी कार्यक्रम प्रोग्राम या लिंक उपलब्ध रहते हैं
2. यही एक पॉपअप मेनू वाला बॉक्स होता है इसमें सिस्टम बायो डिफ़ॉल्ट रूप से इंस्टॉल सभी प्रोग्राम प्रदर्शित होता है।
3. स्टार्ट मेनू को ओपन करने के लिए टास्कबार पर लेफ्ट साइड डिस्प्ले हो रहे स्टार्ट बटन पर क्लिक करते हैं।
4. इसमें हम ctrl+Esc करके भी ओपन कर सकते हैं।
5. स्टार्ट मेनू टैब पर यह डिस्प्ले होता है कि कौन से यूजर प्रेजेंट टाइम में लॉगिन है स्टार्ट मेनू दो तरीकों से डिस्प्ले होता है।
1. Start menu
2. Classic start menu
Note:-स्टार्ट मेनू के अंतर्गत बाय डिफ़ॉल्ट रूप से प्रोग्राम फाइल/होल्डर डिस्प्ले होते हैं।
Basic:- START MENU
MY DOCUMENTS:-
यह एक रियल आइकन होता है। जहां हम अपने डॉक्यूमेंट जैसे लेटर, रिपोर्ट, नोट्स और अन्य प्रकार के डॉक्यूमेंट रख सकते हैं।
नोट -किसी भी फाइल को सेव करने पर यह डिफ़ॉल्ट रूप से माई डॉक्यूमेंट में सेव होता है।
MY RECENT DOCUMENT:-
इस प्रकार के फोल्डर के अंतर्गत तत्काल में यूज किए गए सभी फाइल जैसे इमेज, म्यूजिक, वीडियो और अन्य फाइल डिस्प्ले होता है।
MY PICTURE:-
यह फोल्डर सिस्टम के अंदर डिस्प्ले होता है। इसके अंतर्गत डिजिटल फोटो इमेज व ग्राफिक फाइल को रख सकते हैं।
MY MUSIC:-
इस सिस्टम के अंतर्गत पहले से ही प्रदर्शित होने वाले इस फोल्डर के अंतर्गत समस्त म्यूजिक फाइल तथा अन्य ऑडियो फाइल रख सकते हैं।
MY COMPUTER:-
यह कंप्यूटर का बहुत ही इंपॉर्टेंट रियल आइकन होता है। जिसमें डिस्क ड्राइव, कैमरा, स्केनर तथा हमारे कंप्यूटर से जुड़े हुए अन्य हार्डवेयर तक पहुंचने और उनसे संबंधित सूचनाओं को प्राप्त करने की अनुमति प्रदान करता है। इसका शॉर्टकट की windows button+E होता है।
CONTROL PANNEL:-
इस आइकॉन के द्वारा कंप्यूटर से संबंधित सभी सेटिंग कर सकते हैं।
MY NETWORK:-
इस आइकन के द्वारा हम अपने कंप्यूटर में इंटरनेट को एक्सेस करते हैं।
इंटरनेट को जोड़ने के लिए करते हैं।
Windows कि सेटिंग्स-
Common vocabulary use in computer
SHUT DOWN:-
कंप्यूटर को बंद करने के लिए शटडाउन का उपयोग किया जाता है। इसकी शॉर्टकट कीAlt+F4 होती है।
इसको बंद करने के 2 तरीके हैं –
पहला तरीका
जैसे ही हम शॉर्टकट की यानी Alt+F4 प्रेस करते हैं हमारे सामने स्किन ओपन हो जाएगी। विंडो ओपन होती है टाइप करते हैं shut down और ओके पर क्लिक करते ही बंद हो जाएगी। यहां जो बॉक्स ओपन होता है उससे बोलते हैं डायलॉग बॉक्स। सर्च बार को क्लिक करने पर कई सारे ऑप्शन मिलते हैं। जैसे कि, स्विच यूजर, लॉग ऑफ, रीस्टार्ट, स्लीप, हाइबरनेट, शट डाउन।
दूसरा तरीका
टास्कबार पर एक स्टार्ट का बटन है उस पर क्लिक करेंगे उसे ओपन करेंगे, क्लिक करते ही एक शट डाउन का बर्तन आ जाएगा। शटडाउन के बटन पर एक बार क्लिक कर देना जैसे ही माउस से लेफ्ट क्लिक करते हैं तो कंप्यूटर पूरी तरीके से बंद हो जाएगा।

TURN OFF:-
कंप्यूटर की क्रिया को हम टर्न ऑफ कहते हैं। इसका मतलब भी होता है कंप्यूटर को बंद करना।
LOG OFF :-
किसी भी यूजर के सेक्शन को बंद करने की प्रक्रिया को लॉग ऑफ कहते हैं।
जबाबी स्टार्ट का बटन ओपन करेंगे, तो उनके बगल में ऐरो का बटन होता है वहां पर लॉग ऑफ का ऑप्शन दिखेगा वहां पर जैसी क्लिक करेंगे लॉग ऑफ हो जाएगा।
RESTART :-
यदि कंप्यूटर सही तरीके से काम नहीं कर रहा है तो कंप्यूटर को रीस्टार्ट करके प्रॉब्लम को हल कर सकते हैं, लेकिन कंप्यूटर को रीस्टार्ट करने से पहले यह सुनिश्चित कर लें कि सारा प्रोग्राम जो अल्प खोले हैं वह बंद है। इसका शॉर्टकट की ctrl+Alt+Dcl होता है।
ARRANGE:-
डेस्कटॉप के आइकन को अरेंज करने की प्रक्रिया को अरेंज कहते हैं।
CUT:-
इस कमांड के द्वारा सिलेक्टेड मैटर कट करके दूसरे स्थान पर ले जाया जाता है। इसकी शॉर्टकट की ctrl+Xहोती हैं।
COPY:-
इस कमांड के द्वारा हम सिलेक्टेड मैटर की दूसरी कॉपी बनाते हैं। इसके शॉर्टकट की ctrl +C होती है। इसका मतलब यह हुआ कि एक कार्नर पर कोई मैटर है वह दूसरे कार्नर पर चली जाए, तो इसके लिए हम कॉपी का उपयोग करते हैं। कॉपी करने के बाद एक जगह का मैटर दूसरी जगह पर चला जाता है। हम अपनी आवश्यकता के अनुसार जितनी बार चाहे उतनी बार कॉपी कर सकते हैं।
CLICKING:-
कंप्यूटर के माउस पर लगे बटन को दबाने की प्रक्रिया को ही हम क्लिकिंग कहते हैं।
SCROLL BAR:-
यह किसी विंडोज में दिखाई देने वाले इंफॉर्मेशन को एक सिरे से दूसरे सिरे तक जाने का साधन है। जो सूचना दिखाई ना दे उसे देखने के लिए तथा उसे उसी स्थान पर ले जाया जा सकता है इसके द्वारा।
REFRESH ALL:-
मॉनिटर स्क्रीन पर डिस्प्ले होने वाले पिक्चर का आइकन को दोबारा अपने क्रम में लाने की प्रक्रिया को refreshing कहते हैं। इसकी शॉर्टकट की F5 होती है।
ब्लैंक एरिया पर कहीं पर भी राइट क्लिक करें। राइट क्लिक करने के बाद तीसरा ऑप्शन रिफ्रेश का होता है। इस पर क्लिक करने पर रिफ्रेश होने लगेगा। कंप्यूटर चालू करने के बाद रिफ्रेश करना बहुत ही महत्वपूर्ण होता है।
Tab में इस्तेमाल होने वाले
कीबोर्ड की मदत से अगर आप ऊपर या निचे जाने के लिए Pop UP या Pop Down का इस्तेमाल करेंगे और जो भी Tab में उसे किया जाता है उसे जानेंगे !
POP -UP:-
स्टार्ट मेनू में ऊपर जाने की प्रक्रिया को पॉपअप कहते हैं। हम किसी भी फाइल में हैं और ऊपर जा रहे हैं तो उस क्रिया को पॉप अप कहेंगे।
POP- DOWN:-
स्टार्ट मेनू में नीचे जाने की प्रक्रिया को पॉप डाउन कहते हैं। किसी फाइल मीडिया में नीचे जाने की क्रिया को ही पॉप डाउन कहते हैं।
SELECT:-
किसी भी डाटा या सूचना का चुनाव करना सिलेक्शन कहलाता है। हम किसी डेस्कटॉप पर जाते हैं और वहां कोई फाइल है विंडोज फाइल हमें अगर उस फाइल को डिलीट करना है, कॉपी करना है
इसको एक जगह से दूसरी जगह पर हटा कर रखना है यह सब करने के लिए इसे सेलेक्ट करना पड़ेगा, तो सेलेक्ट करने के लिए माउस कलेक्ट बटन एक बार क्लिक कर देंगे और यह सेलेक्ट हो जाएगा।
SELECT All:-
किसी भी डाटा या सूचना का चुनाव करना तथा पूरे पेज को एक साथ जोड़ना सिलेक्ट कहलाता है। इसका शॉर्टकट की ctrl + A होता है।
MAXIMIZE:-
किसी भी विंडोज को पूरे स्क्रीन पर लाने की प्रक्रिया को मैक्सिमाइज कहते हैं।
MINIMIZE:-
यदि हम किसी विंडोज को यूज नहीं करना चाहते हैं तो मिनिमाइज का यूज करते हैं तथा वह विंडोज पर इतना छोटा हो जाता है कि टास्कबार पर बटन के रूप में डिस्प्ले होता है।
RESTORE:-
किसी भी प्रकार के डिलीट हुए डाटा, फाइल, फोल्डर, या डॉक्यूमेंट आदि को रीसाइकिलिंग से पुनः वापस लाने की प्रक्रिया को रिस्टोर कहते हैं। तथा कंप्यूटर पर मूल स्थान पर रखना ही रिस्टोर कहलाता है।
START (ctrl+Esc):-
डेस्कटॉप के नीचे लेफ्ट साइड में स्टार्ट बटन के रूप में दिखाई देता है इसे क्लिक करके स्टार्ट मेनू चालू करते हैं।
SEARCH:-
यदि हम किसी फाइल के सही जगह या नाम नहीं रखते हैं जिसमें हमें काम करना है तो कंप्यूटर के विंडोज में स्थित सर्च द्वारा फाइल को ढूंढा जा सकता है।
MOVE :-
किसी फाइल को मूव करके नईं स्थिति में ले जा सकते है
THEME:-
विंडोज की बनावट को या डेस्कटॉप के बैकग्राउंड को चेंज करने के लिए इसका यूज करते हैं। देखिए थीम कहां से लगेंगे, ब्लैंक एरिया पर राइट क्लिक पर्सनलाइज्ड जैसे ही क्लिक करेंगे हमारे सामने कई सारे थीम ऑलरेडी बने हुए आ जाएंगे। अब जो आपको यहां पर अच्छा लगता है उस पर आप क्लिक कर दीजिए और आपका थीम चेंज हो जाएगा।
RECYCLEBIN :-
कंप्यूटर में फाइल या फोल्डर या डॉक्यूमेंट को डिलीट करने के लिए इसका यूज किया जाता है।
तथा यह डिलीट फाइल को स्टोर करके जिन्हें बाद में दोबारा प्राप्त किया जा सकता है।
SCREEN SAVER:-
कुछ टाइम के लिए यदि हम अपना कंप्यूटर यूज नहीं कर रहे हैं तो इस स्क्रीन पर चलती हुई पिक्चर आ जाती है जिसे हम स्क्रीन सेवर करते हैं । इसका यूज अपने काम को छिपाने के लिए करते हैं जब तक कंप्यूटर से दूर रहते हैं।
CANCEL :-
प्रोसेसिंग कार्यों को बीच में रोकने के लिए इस कमांड का यूज किया जाता है।
DESKTOP (window button+D) :-
कंप्यूटर पर आइकन एक्ससीरिज जिस स्क्रीन पर show होता है उसे ही हम डेस्कटॉप कहते हैं।
WALLPAPER :-
डेस्कटॉप पर डिस्प्ले होने वाले पिक्चर वॉलपेपर कहलाते हैं। जिसे हम डेस्कटॉप पर बैकग्राउंड के पिक्चर के नाम से जानते हैं। इसे हम अपनी आवश्यकता के अनुसार कभी भी चेंज कर सकते हैं।
SWITCH USER :-
इस कमांड के द्वारा करंट यूजर को बिना लॉग ऑफ हुए दूसरी यूजर में लॉगिन करने के लिए करते हैं।
PRELOADED :-
पहले से लोड किए गए सेटिंग्स को प्रीलोडेड कहते हैं।
BY DEFAULT:-
प्रे सेटिंग को बाय डिफॉल्ट सेटिंग कहते हैं।
ONLINE :-
कंप्यूटर से जुड़ा हुआ उपकरण जो कार्य करता है उसे ऑनलाइन कहते हैं। कहने का मतलब यदि कंप्यूटर के सारे भाग आपस में जुड़े हैं तो वह ऑनलाइन होगा। अपने कंप्यूटर के साथ प्रिंटर को जोड़ा है ऑनलाइन हो गया।
OFFLINE :-
वह उपकरण जो कंप्यूटर से जुड़ा नहीं होता है उसे ऑफलाइन कहते हैं।
PROPERTIES :-
किसी भी फोल्डर ड्राइव आदि के गुणों के बारे में सूचना पाने के लिए प्रॉपर्टीज का यूज करते हैं।
DROPPING :-
किसी भी ड्रॉप किए गए फाइल को किसी भी लोकेशन पर छोड़ने की प्रक्रिया को ड्रॉपिंग कहते हैं।
RUN :-
किसी भी प्रोग्राम को एक्टिव करना रन कहलाता है। इसका शॉर्टकट की window button+R होता है।
LOGG IN :-
जब सिस्टम पासवर्ड प्रोटेक्टेड होता है तो उस पर कार्य करने के लिए हमें सबसे पहले यूजरनेम, तथा पासवर्ड देकर लॉगइन करना पड़ता है।
HYBERNET :-
हाइबरनेट कर देने से हमारा सिस्टम उसी अवस्था में बंद हो जाता है, जबकि अन्य प्रोग्राम खुले रहते हैं जब हम कीबोर्ड से कोई बटन प्रेस करते हैं तो सिस्टम उसी अवस्था में खुल जाता है।
CONNECT :-
दो या दो से अधिक डिवाइस को जोड़ने की प्रक्रिया को कनेक्ट कहा जाता है।
DISCONNECT :-
कनेक्ट डिवाइस को अलग होने या अलग करने की प्रक्रिया को डिस्कनेक्ट कहा जाता है।
PROCESSING :-
डाटा को कंप्यूटर के द्वारा किए गए कार्य को संपन्न करने या किसी डेटा के उपयोग की सूचना में बदलने की प्रक्रिया को प्रोसेसिंग कहा जाता है।
USE DISK SPACE :-
कंप्यूटर का ड्राइव जितना भरा होता है उसे यूज डिस्क ड्राइव करते हैं।
FREE DISK DRIVE:-
कंप्यूटर का ड्राइव जीतना फ्री होता है उसे फ्री डिस्क ड्राइव करते हैं।
RENAME :-
किसी फाइल या फोल्डर का नाम चेंज करना रिनेम कहलाता है। इसका शॉर्टकट की F 2 होता है।
FEATURE :-
हार्डवेयर या सॉफ्टवेयर की विशेषता को फीचर कहते हैं।
SPACEING :-
दो वर्णों के बीच में स्थान को बढ़ाने को स्पेसिंग कहते हैं।
EDITING :-
उपलब्ध टेक्स्ट को बदलने की प्रक्रिया को या फाइल में जरूरत के अनुसार फेरबदल कर सकते हैं इसे ही एडिटिंग कहते हैं।
TRY AGAIN :-
जब हम किसी सॉफ्टवेयर को लोड करते हैं तो किसी कारण वस सॉफ्टवेयर लोड नहीं हो पाता है तो स्क्रीन पर पुनः प्रयास करने के लिए एक निर्देश प्रदर्शित होता है जिससे ट्राई अगेन कहते हैं।
DEBUG :-
जब हमारा सॉफ्टवेयर करप्ट हो जाता है तो सॉफ्टवेयर द्वारा उसे ठीक करने के लिए एक निर्देश दिया जाता है जिसे डेबग जाता है।
APPLY :-
किसी भी सेटिंग को एक्टिव करने के लिए अप्लाई का यूज किया जाता है।
OK :-
जब हम किसी सेटिंग को एक्टिव करने के लिए अप्लाई पर क्लिक करते हैं तो उस सेटिंग को सुनिश्चित करने के लिए ओके पर क्लिक करते हैं।
FINISH :-
जब हम किसी भी सॉफ्टवेयर की इंस्टॉलेशन समाप्त कर देते हैं तब लास्ट में एक बटन आता है जिसे हम फिनिश कहते हैं जिसका अर्थ यह होता है कि कार्य का पूर्ण हो जाना।
NEXT :-
जब हम किसी इंस्टॉलेशन विजार्ड में एक अगली स्टेप में जाना चाहते हैं तो नेक्स्ट बटन का यूज करते हैं।
BACK :-
जब हम किसी इंस्टॉलेशन विजार्ड में एक पिछले स्टेप में जाना चाहते हैं तो बैक बटन का यूज़ करते हैं।
PASSWORD :-
किसी विशेष सॉफ्टवेयर प्रोग्राम तक पहुंचने के लिए बनाया गया कोड है, जिसका गलत यूज ना किया जा सके पासवर्ड के लाता है। जो किसी सॉफ्टवेयर प्रोग्राम को प्रोटेक्ट करने के लिए होता है।
PRINTING :-
कंप्यूटर द्वारा किए गए आउटपुट निर्देश को कागज पर छापने की प्रक्रिया को प्रिंटिंग कहते हैं।
SCANING :-
किसी भी डाटा या प्रोग्राम को कंप्यूटर में लोड करने की प्रक्रिया को स्कैनिंग कहते हैं।
ACTIVE ICON :-
वह आइकन जिन्हें हम डेस्कटॉप पर यूज करते हैं वह एक्टिव आइकन होते हैं।